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सपना

घुप्प अँधेरा पसरा  है बाहर दूर खलियानों से भीतर के कोनों तक । एका एक बारिस और छत से गिरता पानी बिजली की गडगडाहट भी डरा रही है । दियासलाई के डिब्बे में भी सिर्फ एक दियासलाई , उससे भी लालटेन जला दी , वो भी भप भप कर जलती दिख रही है , शायद तेल कम है । तभी पास में रखे उजले डिब्बे की तरफ निगाह गयी जो अपनी रौशनी से जगमगा रहा है उसे हाथ में उठा लिया , जिसमें जुगनू आपस में भिड रहे हैं , जो मैंने एक एक कर जमा किये जैसे कह रहे हों मैं तुझसे ज्यादा चमकता हूँ और इस भिंडत में , और ज्यादा रौशन हो रहे हैं । उन्हें देखते हुए सब भूल दिवार पर सिर टिका बैठ गयी तभी तेज़ आँधी और तुफान आने से मेरे हाथों से , वो जुगनुओं का डिब्बा छुट गया जुगनू छितरा गये बिखर गये इधर उधर मैं हतप्रत बस देखती रही इतना अँधेरा !!!! अब लालटेन भी बुझ चुकी है पेड उखड गये हैं , पौधे टूट गये हैं मेरी छत भी तो उड गयी है उस तूफान में सब बिखर गया । तभी दूर से आती हल्की रौशनी अब और तेज़ होने लगी हर तरफ फैल गयी और मैं मलते देखती हूँ कि सवेरा हो गया वो आँधी , बारिस , अँधेरा सब पीछे छूट गया वो मेरा भ