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Showing posts from December, 2014
अभी कुछ देरपहले मुझे आवाज़ आयी माँ , मैं यहाँ खुश हूँ सब  बैखोफ घूमते हैं कोई रोटी के लिये नहीं लड़ता धर्म के लिये नहीं लड़ता देश के लिये, उसकी सीमाओं के लिये नहीं लड़ता देखो माँ हम हाथ पकड़े यहाँ साथ में खड़े हैं सबको देख रहे हैं माँ, बाबा से भी कहना कि रोये नहीं हम आयेगें फिर आयेगें पर पहले हम जीना सीख लें फिर सीखायेगें उनको भी जिन्हें जीना नहीं आता मारना आता है माँ, आँसू पोंछकर देखो मुझे मैं दिख रहा हूँ ना!  हम सभी आयेगें पर तभी जब वो दुनिया अपनी सी होगी नहीं तो हम बच्चे उस धरती पर कभी जन्म नहीं लेगें तब दुनिया नष्ट हो जायेगी है ना!  पर उससे पहले माँ, बाबा आप यहाँ आ जाना हमारे पास हम यहीं रहेगें फिर कोई हमें अलग नहीं करेगा तब तक के लिये तुम मत रोना हम सब देख रहे हैं और मैं रोते हुए चुप हूँ बस एक टक देख रही हूँ तुझे बेटा तेरे होने के अहसास के साथ ©दीप्ति शर्मा

मुट्ठियाँ

बंद मुट्ठी के बीचों - बीच एकत्र किये स्मृतियों के चिन्ह कितने सुन्दर जान पड़ रहे हैं रात के चादर की स्याह रंग में डूबा हर एक अक्षर उन स्मृतियों का निकल रहा है मुट्ठी की ढीली पकड़ से मैं मुट्ठियों को बंद करती खुले बालों के साथ उन स्मृतियों को समेट रही हूँ वहीं दूर से आती फीकी चाँदनी धीरे - धीरे तेज होकर स्मृतियों को देदीप्यमान कर आज्ञा दे रही हैं खुले वातावरण में विचरो , मुट्ठियों की कैद से बाहर और ऐलान कर दो तुम दीप्ति हो, प्रकाशमय हो बस यूँ ही धीरे - धीरे मेरी मुट्ठियाँ खुल गयीं और आजाद हो गयीं स्मृतियाँ सदा के लिये ©दीप्ति शर्मा