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पिता

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पिता मेरी धमनियों में दौड़ता रक्त और तुम्हारी रिक्तता महसूस करती मैं, चेहरे की रंगत का तुमसा होना सुकून भर देता है मुझमें मैं हूँ पर तुमसी दिखती तो हूँ खैर हर खूबी तुम्हारी पा नहीं सकी पिता सहनशीलता तुम्हारी, गलतियों के बावजूद माफ़ करने की साथ चलने की सब जानते चुप रहने की मुझे नहीं मिली मैं मुँहफट हूँ कुछ,  तुमसी नहीं पर होना चाहती हूँ सहनशील तुम्हारे कर्तव्यों सी निष्ठ बन जाऊँ एक रोज पिता महसूस करती हूँ मुरझाए चेहरे के पीछे का दर्द तेज चिड़चिड़ाती रौशनी में काम करते हाथ कौन कहता है पिता मेहनती नहीं होते उनकी भी बिवाइयों में दरार नहीं होती है चेहरे पर झुर्रियां कलेजे में अनगिनत दर्द समेटे आँखों में आँसू छिपा प्यार का अथाह सागर होता है पिता तुम सागर हो आकाश हो रक्त हो बीज हो मुझमें हो बस और क्या चाहिए पिता जो मैं हू-ब-हू तुमसी हो जाऊँ । __ Deepti Sharma

कविता

प्रेम की चिट्ठियों ! तुम्हारे शब्द मेरे रक्त का वेग हैं जो मेरे भीतर जन्म-जन्मातर तक प्रवाहित होते रहेंगे मष्तिष्क की लकीरों से आँखों की झुर्रियों तक का सफर तय किया है साथ में हमनें चिट्ठियां पुरानी नहीं होती वह अहसासों में बसती है वर्ष बीत जाते हैं बस बीते वर्षों में कुछ यादों ने कँपते हाथों में जान डाल दी देखो साँस चल रही बोल नहीं निकले तो क्या वेंटिलेटर पर हूँ चिट्ठियां थामें ये क्या! बँधी मुट्ठियाँ खुल गयी जीवन के अंतिम वक्त में चिट्ठियां छूट रही साँस टूट रही मेरी आँखें बंद हो रही तुम्हारे अक्षर धुल रहे अब लगता है, पुरानी हो जाएगीं चिट्ठियां सुनो! रोना मत मेरे जाने के बाद आखिरी चिट्ठी में तुम रोये थे कह गये थे रोना मत मैं रो नहीं रही समय अब मेरा नहीं रहा ना क्योंकि एक समय बीत जाने पर मिट जाता है भूतकाल और देखा जाता है भविष्य प्रेम चिट्ठियां यादें पुराने समय की बात हो चली अब तो डाकिया भी नहीं आता। @ दीप्ति शर्मा
रात के पलछिन और तुम्हारी याद वो बरसात की रात कोर भीग रहे, कुछ सूख रहे कँपते हाथ पर्दा हटा देख रहे चाँद जैसे दिख रहे तुम हँस रहे तुम गा रहे तुम उस धुन और मद्धम चाँदनी में खो रही मैं रो रही मैं रात सवेरा लाती है तुमको नहीं लाती आँसू लाती नींदें लाती सपने लाती मैं दिन रात के फेर में फँस रही हूँ जकड़ रही हूँ कुछ है जो बाँध रहा ये रात ढल नहीं रही और तुम हो कि आते नहीं मुस्कुराते हो बस दूर खड़े सुन लो मुस्कुरा लो जितना मुस्कुराओगे मैं उतना रोऊँगी नहीं बीतने दूँगी रात मैं भी रात के शून्य में विलीन हो मौन हो जाऊँगी सुन लो तुम।   @दीप्ति शर्मा
मैं चीख रही , मेरा लहू धधक रहा कहीं सड़क लाल तो कहीं बदरंग हो रही पर ना बिजली चमकी ना बरसात हुई ना आँधी आयी आयी तो उदासी बस नसीब में मेरे सुन ख़ुदा ! तू बहरा हो गया क्या ? -दीप्ति शर्मा
नीले आसमां को देखती निगाहों की टकटकी, आँखों से रिसते पानी को सुबह की ओस से रात का तारा बना देती  है । @दीप्ति शर्मा
ये अमावस तारीखों में दर्ज हुयी बीत जाएगी, पर जो तुम मन में बसा लिए हो वो अमावस कभी क्या बीत पाएगी ? जवाब यही कि वक्त तो आने दो वक्त भी आया और गया पर अमावस ना खतम हुयी देखो मन तो तुम्हारा अँधेरी सुरंग हुआ जा रहा बदबू साँस रोक रही कैसे जी रहे हो तुम? यहाँ मेरा दम घुट रहा। #अमावसकीरात और #तुमकोसमझतीदीप्ति
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