मैं चीख रही ,
मेरा लहू धधक रहा
कहीं सड़क लाल तो
कहीं बदरंग हो रही
पर ना बिजली चमकी
ना बरसात हुई
ना आँधी आयी
आयी तो उदासी
बस नसीब में मेरे
सुन ख़ुदा !
तू बहरा हो गया क्या ?
-दीप्ति शर्मा
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कोई तो होगा
नयन
वरालि सी हो चाँदनी लज्जा की व्याकुलता हो तेरे उभरे नयनों में । प्रिय विरह में व्याकुल क्यों जल भर आये? तेरे उभरे नयनों में । संचित कर हर प्रेम भाव प्रिय मिलन की आस है तेरे उभरे नयनों में । गहरी मन की वेदना छुपी बातों की झलक दिखे तेरे उभरे नयनों में । वनिता बन प्रियतम की प्रिय के नयन समा जायें तेरे उभरे नयनों में । © दीप्ति शर्मा
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